
गांव में
डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना
लगी है चलने अंगड़ाई ले,हवा नशीली गांव गांव में पता नहीं क्यों झूम रहीं,फसलें जहरीली गांव गांव में हंसते थे,शहरों में रिश्ते होते चाय की प्याली में अब तो संबंधों की राहें,पथरीली हैं गांव गांव में धन की चका चौंध से माना,सोच नगर की मैली है आज बेटियों को कुछ लुच्चे,कहें रसीली गांव गांव में था प्रदूषण कट्टरपन का,नगरों वाली गलियों में इसमें ले, डूबकी राहें , बन रहीं कंटीली गांव गांव में आदर के बदले दुत्कार की,रोटी खाती है माई बनी जिंदगी बाबू जी के लिए पहेली ,गांव गांव में भइया ,भउजी,काकी के, संबोधन हैं,दम तोड़ रहे अहंकार की ऊंची होने लगी हवेली,गांव गांव में ज्ञान किताबों वाला अब तो फेसबुक तक सिमट रहा लेने लगी पढ़ाई वाट्सऐप की अठखेली गांव गांव में।