
शब्द
डाॅ.महिमा श्रीवास्तव
प्रभु की असीम कृपा कि मेरे शब्द उच्चारित हो पाते लेखनी बनके भी उभर जाते। मेरे शब्द ऐसे हों हे भगवन् तपित धरा पर वर्षा बूंदों से प्रगाढ़ अंधेरे में जुगनुओं से। मनों की सीप पर जा गिरें तो वे दमकते मोती ही बनें किसी हीन की सौगात बनें। और गीतों में यदि वे ढलें दुःखी ह्रदयों का संताप हरें आशा का मधुर संगीत भरें। क्रोध व छल से कोसों दूर शब्द विश्वास का प्रतीक बनें ज्ञान- विज्ञान का वे स्रोत बनें।