
ज्योति
हँस राज ठाकुर
तुम ज्योति हो इस जीवन की, तुम्हें ही मैं संसार कहूँ, रस टपकाते इन होठों को, जीवन की झनकार कहूँ I तुम्हें सौन्दर्य का दर्पण मानूं, या सांसों का गान कहूँ, तेरे मदमस्त यौवन को मैं, सुन्दरता का मान कहूँ I नैन तुम्हारे चंचल-चंचल, जीवन में सौन्दर्य रस भरते, इन झुकी हुए पलकों को मैं, संस्कृति का प्रतिमान कहूँ I पाँव की आहट सुनकर तुम्हारे, पंख पसारे सावन आया, तेरी लहराती जुल्फों को मैं, प्रकृति का वरदान कहूँ I शहद टपकाती मुस्कान में, मधम मधम तेरी चपलता, सागर जैसे इस स्वरूप को, जीवन का सम्मान कहूँ I