
तवज्जो मिल रही है तीरगी को
श्लेष चन्द्राकर
तवज्जो मिल रही है तीरगी को नज़र किसकी लगी है रौशनी को बहुत कम लोग मिलते हैं जहां में जो समझे हर किसी की बेबसी को किसी के काम आने के लिए ही मिली है ज़िंदगी ये आदमी को दिखावा दिल नहीं है जीत पाता मिली इज़्ज़त हमेशा सादगी को यहाँ हालात से जो हार माने वही तैयार होता खुदकुशी को बिखेरेगी महक खिलकर जहां में न तोड़ो भूलकर कच्ची कली को हमारे दिल को जो छूकर के गुज़रे मिलेगी दाद ऐसी शाइरी को