
कठिन रास्तों की चढ़ाई...
आकाश महेशपुरी
कठिन रास्तों की चढ़ाई से डर के रहोगे नहीं तुम इधर या उधर के वही देश को अब चलाते हैं यारों जो मसले किये हल नहीं अपने घर के बहुत जल्द ही भूल जाती है दुनिया अमर कौन होता यहाँ यार मर के सिसकता दिखा आज फिर से बुढ़ापा समेटे हुए दर्द को उम्र भर के कहे जो मनुज वो करे भी अगर तो कहाँ कोई बाकी रहे बिन असर के चले वक़्त 'आकाश' क्यों ये मुसलसल चलो सोचते हैं जरा हम ठहर के