
दोहे
अमर'अरमान'
मात- पिता गुरुदेव बिन,सफल होति नहि काज। मात-पिता गुरुदेव को,वंदन मेरा आज।।(१) पाहन की पूजा करी, सकल हुआ ना काज। मात-पिता वंदन किया,सफल हुआ मैं आज।।(२) रखा उदर में माह नव,वंदन उसको आज। हाथ पकड़ जिनकी चला,उन पर मुझको नाज।।(३) जीवन का तम दूर कर,दिया खुला आकाश। उस गुरू को वंदन करुँ,किया तमस का नाश।।(४) मेरे भाव -विचार को,मिला सदा ही मान। नमन आज उस धरा को, जहाँ मिला सम्मान।।(५) मात-पिता दो पेड़ है,हम सब उसकी साख। जीवन रूपी गात की, हम हैं सुंदर आंख।।(६)