
भूत ने हर किसी के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोडी है। सिद्धार्थ अर्थात सिद्धु के मन में भूत ने, संवेग-आवेग को चरम सीमा तक पहुँचा दिया है। सिद्धु कौतुहलता और खौप के साए में घीरा रहा लम्बे समय तक। वह जो कुछ भी करना चाहता तो भूत उसके सपने में आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा जाता। नादानी वष उसने पिछा छुड़ाने के लिए हनुमान चालीसा भी पढ़ा। रात को जब भी उसकी नींद अचानक बौखलाहत में खुल जाती तो पत्नी के पुछने पर वो यही कहता ’’ भूत ने डरा दिया।’’
सिद्धार्थ के मन-मस्तिष्क को घोड़ा दौड़ा जा रहा है, होनी-अनहोनी से अन्जान। खुद पे सवार भूत को उतारने की लाख कोशीशों के बावजुद भी असमर्थ। सिद्धार्थ दौड़ा-भागा जा रहा है। बहुत बड़ी अनहोनी की संभावना को देख, भूत सिद्धार्थ के सामने आ गया , पसीने से तर-बतर और आँखों में खौफ, बौखलाहत और कश्मकश का दास हो चुके सिद्धार्थ से बोला ’’ डरो मत, मैं तो सिर्फ एक घटना हूँ, मेरे कारण कोई भी दुघर्टना न हो, मेरे बारे में सोचना छोड़ो और वर्तमान के बारे में सोचो। ’’ भूत गायब हो गया और सोचते-सोचते सिद्धार्थ को गहरी नींद आ गई।