
दोहे रमेश के बसंत पंचमी पर
रमेश शर्मा
(1) मातु शारदे दीजिए, यही एक वरदान । दोहों पर मेरे करे, जग सारा अभिमान ।।(2) मातु शारदे को सुमिर, दोहे रचूँ अनंत । जीवन मे साहित्य का.छाया रहे बसंत ।।(3) सरस्वती से हो गया ,तब से रिश्ता खास । बुरे वक्त में जब घिरा,लक्ष्मी रही न पास ।।(4) आई है ऋतु प्रेम की,.... . आया है ऋतुराज । बन बैठी है नायिका ,सजधज कुदरत आज ।।(5) जिसको देखो कर रहा, हरियाली का अंत । आँखें अपनी मूँद कर, रोये आज बसंत ।।(6) पुरवाई सँग झूमती,.. शाखें कर शृंगार । लेती है अँगडाइयाँ ,ज्यों अलबेली नार ।।(7) सर्दी-गर्मी मिल गए , बदल गया परिवेश । शीतल मंद सुगंध से, महके सभी "रमेश" ।।(8) ज्यों पतझड़ के बाद ही,आता सदा बसंत । त्यों कष्टों के बाद ही,खुशियां मिलें अनंत ।।(9) हुआ नहाना ओस में ,...तेरा जब जब रात । कोहरे में लिपटी मिली,तब तब सर्द प्रभात ।।(10) कन्याओं का भ्रूण में,..... कर देते हैं अंत । उस घर में आता नही, जल्दी कभी बसंत ।।(11) बने शहर के शहर जब, कर जंगल काअंत । खिड़की में आये नजर, हमको आज बसंत॥(12) खिलने से पहले जहाँ , किया कली का अंत । वहां कली हर पेड़ की, ...रोये देख बसंत ।।(13) फसलें दुल्हन बन गई,मन पुलकित उल्लास । आशा की लेकर किरण, ..आया है मधुमास ।।(14) पिया गये परदेश है... ..,आया है मधुमास । दिल की दिल मे रह गये,मेरे सब अहसास ।।