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कालू पहलवान की चाय की दुकान पर सदर्शन गुप्ता जी शांत बैठे हुए थे। ठंड के मौसम में टेबल पर रखी चाय ठंडी हो रही थी। चाय की ही दुकान पर तीन-चार मित्र बने अखबार में कुछ पढ़कर ठहाका लगा रहे थे।
एक ने कहा, ‘‘गुप्ता जी, देखिए तो क्या मस्त रंगीन खबर छपी है? क्या माल है?’’
रोज ही सुदर्शन गुप्ता किसी लड़की की यौन-शोषण की खबर सुनकर अपने मित्रों के साथ, चाय का आनंद लेते हुए ठहाका लगाते थे। दूसरे मित्र ने अखबार गुप्ता जी के पास बढ़ाया। गुप्ता जी की तिरछी नजर, थोड़ी दूर शून्य में घूरने के बाद अखबार पर पड़ी और आंसू बह निकले। गुप्ता जी के ही फ्लैट के सामने वाले मित्र भी उनके साथ चाय पीने जाते थे। उन्होंने अखबार पर नजर डाली, गुप्ता जी की तरफ भावुकता से देखा और उनकी भी आंख नम हो गई। क्योंकि जिस लड़की की तस्वीर और गर्म खबर अखबार में छपी थी, गुप्ता जी की मंझली बेटी उपासना की थी। गुप्ता जी ने ठंडी चाय को एक बार में गटक लिया और बाहर निकल गए। पीछे से उनके फ्लैट वाले मित्र शर्मा जी भी निकल गए।