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माना पंचों से सजा, दिखता पूरा मंच जूता भी बजने लगा, कौन बने सरपंच। रोकें रस्ता सिंह का, कहते सभी सियार लेकिन दल में है भरी, कूट-कूट तकरार। अब तक तो लड़ते रहे, बुआ भतीजा रोज लेकिन अवसर के लिए, लिया मेल को खोज। कई दलों के मेल से, दलदल हुई विशाल सावधान हो जीव हे!, अगर बचानी खाल। करामात है वक्त की, पूरे वन पर भार साईकिल पर जब हुआ, हाथी एक सवार। खां-खां कर जो खाँसकर, कल कहता था चोर उसी चोर के साथ मिल, दिखे लगाता ज़ोर। राम विरोधी है यहाँ, खुद सीता औ राम चोरों की जो फ़ौज है, उसमें इनका नाम।