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अंतिम संस्कार के बाद ब्रजभूषण राय अंतिम निवास में अपनी पत्नी रजनीगंधा से मिले, जो दस वर्ष पहले ही यहां की स्थायी निवासी हो चुकी थी। अंतिम निवास में लाशों के जलने और परिजनों का विलाप करने की स्थिति को देखकर ब्रजभूषण राय अपनी पत्नी से बोले, “तुम्हारे बाद पीयूष को माँ-बाप दोनों का प्यार दिया। पत्नी के आते ही बेटे की अक्ल पर पत्थर पड़ा और हमको वृद्धा आश्रम का रास्ता दिखा दिया। अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या करने का प्रयास किया, मगर शर्मा जी ने हमको बचा लिया। अंतिम संस्कार भी वृद्धा आश्रम के मित्रों ने ही किया।”
रजनीगंधा ने कहा, “हमको पता है। मैं भी बहुत दुखी हुई। भगवान ऐसी संतान किसी को न दे।” वो कहकर अपने पति से लिपट गई, दोनों के होंठ एक-दूसरे को स्पर्श करते रहे।
झींगुरों ने कोरस गान शुरू किया। औघड़ों की मंडली गांजा का कश लेकर, एक और लाश को आते देखकर गीत गाने लगे, “न कोई आस है और न यहाँ कोई किसी का दास है, यह अंतिम निवास है, ये अंतिम निवास है।”
ब्रजभूषण राय और उनकी पत्नी बरगड़ के पेड़ की झुरमुट में समा गए।
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