![]() |
मुखपृष्ठ |
सौगंध की शारीरिक स्थिति बहुत अच्छी थी। मानसिक स्थिति भी काबिल-ए-तारीफ थी। अगर अच्छी नहीं थी तो वो थी उसकी आर्थिक स्थिति।
लगभग लोगों की तरह सौगंध भी आर्थिक स्थिति को सबसे अच्छी स्थिति मानता था। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए सौगंध दिन-रात परेशान रहने लगा।
‘समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को नहीं मिलता’ वाली कहावत वो बहुत बार सुन चुका था, मगर मानने को कभी तैयार नहीं था।
सौगंध को परेशान देखकर उसकी पत्नी सुगंधा भी परेशान रहने लगी।
एक दिन सुगंधा, सौगंध को समझाते हुए बोली, ‘‘मुन्नी के पापा, हम पांच परिवार ही तो हैं। भगवान पार-घाट लगाएंगे। चिंता क्यों करते हैं?’’
सौगंध, सुगंधा की तरफ फटी आंखों से सिर्फ देखता रह गया, कोई जवाब नहीं दिया।
एक दिन अचानक सौगंध कहने लगा, ‘‘मेरा सामान बांध दो। और कुछ नाश्ता बना दो। मैं परदेश जा रहा हूं। वहां जाकर सब ठीक हो जाएगा।’’
सुगंधा उदासी के कारण यह भी नहीं बोल सकी, ‘‘मत जाइए, सुख-दुख यहीं बांट लेंगे।’’ मन की बात मन में ही रह गई।
आर्थिक स्थिति अच्छी करने की इच्छा में सौगंध ने शारीरिक स्थिति पूरी, मानसिक स्थिति आधी खत्म कर ली। कुछ महीनों में ही सब कुछ बदल गया। सुगंधा ने कई पत्र लिखे, टेलीफोन भी किया। सौगंध ने कोई जवाब नहीं दिया। पहले माता-पिता, फिर बाद में तनावग्रस्त जीवन के कारण सुगंधा की असमय मृत्यु हो गई। सौगंध की पारिवारिक स्थिति भी खराब हो गई।
आज सौगंध की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है।