
दोहे
कृष्णलता यादव
सच का कर ले सामना, सुन ले मेरे मीत। किला झूठ का गिर पड़े, ज्यों बालू की भीत।। किस्मत को नहीं कोसता, मेहनतकश इन्सान। खेत-क्यार सब गा उठे, श्रम-गाथा का गान।। ज्वाला भड़की द्वेष की, छाया तम घनघोर। नीर बहा जब प्रीत का, जयकारा हर ओर।। भारी महिमा मौन की, जाने सकल जहान। तौल-तौल कर बोलते, हरदम सन्त सुजान।। विपदाओं के दौर में, देते हैं जो साथ। सन्तों की वाणी कहे, सदा अमर वे हाथ।। जिसके सिर पर शोभता, सच्चाई का ताज। लोगों के दिल पर करे, युगों-युगों तक राज।। पहले औरों को दिया, पीछे अपना पेट। खुशियाँ ही खुशियाँ सदा, पाई उसने भेंट।। परहित का पगडण्डियाँ, ज्यों खांड़े की धार। रास जिसे ये आ गईं, समझो बेड़ा पार।।