
विकास भाव
राजीव कुमार
अपने सपने को साकार करने में गौरव ने अपना सब कुछ दाँव पे लगा दिया और जीत भी हासिल की, उसने किसी का कुछ छीना नहीं था, फिर भी किसी की दोस्ती, किसी के अपनेपन को उसने दरकिनार कर दिया था या स्वतः हो गया था। गौरव के मित्रजनों और स्वजनों की यादों ने उसकी घुटन को और बढ़ा दिया था। माँ के करूणा स्वर फोन पर ’’ तुम मेरे मरने की खबर सुनकर ही घर आना। ’’ रह-रह कर गौरव के कानों में गूँजते रहे। उसका मन करता कि सारे प्रोजेक्ट छोड़ कर घर चला जाऊँ और एक दिन वो आया भी। अपने दोस्त और संबंधियों को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया तो अपने गाँव के विकास की बात सोचकर उसके लोगों ने ही उसको ताने देकर वापस शहर भेज दिया। गौरव को हर ताना आशीर्वाद और शुभकामनाएं प्रतीत हो रही थीं।