
रेलगाड़ी में खिड़की किनारे बैठ कर मोहन को बहुत सी खट्टी-मिठी बातों का एहसास हुआ। एक स्टेशन पर गाड़ी रूकी तो यात्री को छोड़ने आए उसके परिवार के आँखों की आँसू ने मोहन को अकेले होने का एहसासा करा दिया। गाड़ी छूटते ही मोहन उन यादों से बाहर निकल गया। अगली स्टेशन पर गाड़ी रूकी तो उस यात्री को अकेला देखकर मोहन ने खुद में महसुस किया कि मेरी तरह यह भी अकेला है, इसको भी कोई स्टेशन तक छोड़ने नहीं आया। मोहन का मन कुछ हल्का हुआ और मोहन ने अपना ध्यान किताब पर लगा दिया। मोहन किताब में इतना खो गया था कि कब गाड़ी रूकी उसको कुछ भी पता नहीं चला। अचानक मोहन ने देखा कि ये तो ’इंजोरा’ स्टेशन है और सारी बातें उसके मन-मस्तिष्क में तरोताजा हो आईं। इंजोरा में ही उसकी प्राथमिक पाठशाला हुई थी। यहाँ के दोस्त सारे एक-एक करके याद आने लगे। गब्लू, पिंकू, मीना ताई और संगीता भी जिसके साथ वो स्कुल जाया करता था। टी0टी0 से पूछने पर पता चला कि गाड़ी यहाँ पर आधा धण्टा और रूकेगी और इंदौर के लिए अगली गाड़ी तीन घंटे बाद में है। मोहन अब इस जगह की याद को दरकिनार नहीं कर पाया, मन में व्याकुलता घर कर गई थी। मोहन कशमकश में था कि अपने घर के आस-पास की यादें फिर से तरोताजा कर अगली ट्रेन से वापस आऊँ या न आऊँ। फोन आते ही उसने चैन की सांस ली और अगली बार पर इरादा टालकर उसने न जाने का मन बना लिया। ’इंजोरा’ से ’इंदौर’ पहुँचने तक उसका मन ’इंजोरा’ गाँव में ही रहा।