
पांच दिन से भूख हड़ताल पर बैठे साधू बाबा की मौत हो गई। भूख हड़ताल इसलिए नहीं कि सरकारी योजना के पूर्ण होने की मांग हो, बल्कि इसलिए कि हर वर्ष की तरह इस बार भी सूखा न पड़े।
साधु जी ने गांववालों को आश्वासन दिया था कि ’’ मैं पूजा-पाठ करूंगा, अन्न-जल का त्याग कर दूंगा तो अवश्य ही वर्षा होगी। ’’
साधु बाबा की मांग के अनुसार गांव वालों ने पांच हजार रूपया , कपड़े और फल मेवे देने का वादा किया था, मगर अब क्या अब तो साधु बाबा भी नहीं रहे और बरसात भी नहीं हुई। गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है।
बुधन काका ने धन्नु काका से कहा ’’ भाई पहले तो हमलोग दुःखी थे। साधु बाबा की मौत से और भी दुखी हो गए। अब तो पाप लगेगा पाप। ’’
धन्नु काका ने बुधन काका से कहा ’’ अब विधाता को जो मंजूर होय। क्रिया-क्रम कर देते हैं। ’’
जब तक क्रिया-क्रम नहीं हुआ तब तक मातम पसरा रहा। दुर्भाग्य बार-बार नाच कर चली जाती थी। बोरहन काका ने तो यहां तक कह दिया कि ’’ साधु बाबा की मृत्यु उनके अपने जिद्द के कारण हुई है। भूख-हड़ताल करने की कोई जरूरत नहीं थी। ’’ लोगों ने बोरहन काका को किसी तरह चुप कराया। अब तो लोगों ने भगवान के भरोषे छोड़कर आकाश की तरफ देखना ही छोड़ दिया और अपने-अपने काम में लग गए। क्रिया-कर्म खत्म होने के बाद ही मूसलाधार बरसात हुई और इतनी हुई कि खेतों के फसल डूब कर सड़ गए। पूरा गांव बाढ़ की चपेट में आ गया। बोरहन काका ने अपनी पत्नी सुतनी से कहा ’’ ये साधु बाबा का ही चमत्कार है कि ’’ आकाश खूशहाल और धरती बेहाल ’’ हुई है। बाढ़ का पानी तो जल्द ही निकल गया लेकिन उस गांव में साधु बाबा की जय-जयकार होने लगी। इस वर्ष तो जो हुआ सो हुआ, अगले वर्ष फसल भी काफी अच्छी हुई। बेहाली के बाद खुशहाली का आनंद लोगों ने उठाया, साधु बाबा के नाम से मंदिर बनवाया और गांव का नाम साधुपुर रख दिया।