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मेरे भीतर मर गया ,पढा-लिखा इंसान । उस दिन से नेता सभी ,बाँट रहे हैं ज्ञान ।। सहमा सोया आदमी,बहुत सहा अपमान । लेकिन फिर भी कह रहा,भारत यही महान ।। पास कभी तो था नहीं,कौड़ी और छिदाम । आज उसी की कोठियां,भरे-भरे गोदाम ।। ऐनक टूटा आँख का,कब सुन पाया कान । तेरा बन्दर बाप जी ,है चतुर बदजुबान ।। सुलगाते ही सोचते ,धूप- अगर-लोभान मंदिर बज ले घण्टियाँ ,मस्जिद होय अजान