"चटाक....." ज़ोरदार तमाचे की आवाज़ से सन्नाटा तो गुंजायमान हो ही गया, साथ ही तमाचा पड़ने पर पेड़ के पीछे
खड़े उस पन्द्रह साल के बच्चे के मुंह से सिगरेट दूर जा गिरी, लड़खड़ाते हुए उस बच्चे ने देखा कि वहीँ फुटपाथ पर
जूते पोलिश करने वाले लगभग उसी की उम्र के बच्चे ने उसे तमाचा लगाया था।
"अबे... क्यों मारा?" पहला बच्चा लगभग गुर्राया।
तमाचा लगाने वाला दूसरा बच्चा शब्दों को चबाते हुए बोला
"सिगरेट क्या अच्छी बात होती है? इस उमर में सिगरेट पियेगा तो जल्दी मर जायेगा..."
"यार! माँ-बाप और घर की याद आ गयी थी... पूरा एक महिना हो गया है... फिल्म में काम करने घर से भाग कर
यहाँ आया था... अब तककुछ काम तो मिला नहीं, सोचा दो कश लगा कर दिमाग ठिकाने लगाता हूँ, लेकिन तूने तो
दिमाग ही घुमा ही दिया।" कहते हुए उसकी लाल आँखें हल्की सी भर गयी।
"चला जा यहाँ से... घर लौट जा... जिन्दगी बन जायेगी, मेरी तरह साल-दो साल हो जायेंगे तो फिर जाना मुश्किल हो
जायेगा..." दूसरे बच्चे का स्वर आदेशात्मक था।
"अच्छा! तो तू भी? तू तो शरीफ लगता है, तू क्यों भागा घर से?" पहला बच्चा अपना दर्द भूल कर हँस कर पूछने लगा।
दूसरा बच्चा मुड़ा और मुंह पीछे किये ही फुटपाथ पर अपनी दूकान में रखे पत्थर पर जाकर बैठ गया, और आँखें पोंछते हुए
बहुत धीमे स्वर में बोला,
"बच्चों का सिगरेट पीना अच्छी बात नहीं होती... यह हाथ में आती है तो अँगुलियों से पेन्सिल छूट जाती है, इसका एक
सिरा पूरी जिंदगी जला देता है और दूसरा थप्पड़ खाने पर मुंह खुलवा देता है, चाहे सामने बाप ही क्यों न खड़ा हो..."