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केवल अब बंदूक है,ग़ायब केसर सेब। निगल गया कश्मीर को,आतंकी आसेब*।। *आसेब-भूत बस्तर सा सुंदर नहीं,जिला मगर हो काश। ख़त्म वहाँ से हो सके,राजनीति का पाश।। चाहे हो सौ साल की, या कोई नादान। औरत केवल भोग का, होती है सामान।। सबसे हँसकर भी ज़रा, मिला करो कम यार। ठीक नहीं है आजकल, बहुत लुटाना प्यार।। आशीषों से हो भरे,जीवन के सोपान। हार और ‘भवि’ जीत क्या, बनो नेक इंसान।। सीधे सच्चे को कहाँ,मिलता अब सम्मान। दुम जिसकी जितनी हिले,उसका उतना मान।। बड़ी दुखद ये बात है, बस मतलब का साथ। मतलब निकले भूलता, बायाँ दायाँ हाथ।। चाटुकारिता से बड़ा, हुनर नहीं है आज। मंच-पोस्ट ग्रुप हर जगह,भवि इसका ही राज।। रंग- बिरंगे फूल हैं, खिले हुए चहुँ ओर। धरती के इस रूप पर,मन नाचे बन मोर।। ईश तुम्हारे साथ हैं , करते रहो प्रयास । जीवन में कितने मिलें,तुम्हें विरोधाभास।। नाकाफ़ी इस दौर में,'भवि' जीतोड़ प्रयास। चाटुकारिता के बिना,रखो नहीं कुछ आस।। सोचो 'भवि' है मतलबी,कितना वो इंसान। मतलब में इंसान को,बोले जो भगवान।। बातों से उस शख़्स की,कैसे हो पहचान। जिसके मन में कंस है, मुख पर जय भगवान।। ईश कहे जो आपको, तो समझें ये आप। उसके मन में है भरा, निश्चित कोई पाप।। बूँद स्वाति की जिस तरह, ले लेती है सीप। धारण कर लो ईश गुण,नहीं रहोगे चीप।। श्रेष्ठ हुए हैं जन्म से,कौन जगत में लोग। कर्मों से ही श्रेष्ठता, का बनता संयोग।। जीवन जब नीरस लगे,बोरिंग और तबाह। याद करो भवि ईश को,वो देगा उत्साह।। मन हो पावन आपका, रौशन आँगन-द्वार। ईश करे घर में सदा,’भवि’ हों ख़ुशियाँ-प्यार।। मन मयूरा झूम उठा,सुन क़दमों की चाप। यादों में चुपचाप से ,जबसे आये आप।। नाम रटो तुम ईश का,बेशक सुबहोशाम। लेकिन सब बेकार है, बिना किए सद्काम।।