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इक्कीसवीं सदी की बेटी
- आकांक्षा यादव
वह एक आदर्श एवं सु-संस्कृति संपन्न लड़की थी। घर वाले हमेशा उसकी तारीफ करते। रंग भले ही साँंवला था पर गुणों की खान। हर चीज को सहेजना, हर किसी की जरूरतों का ख्याल रखना कोई उससे सीखे।
लड़की बड़ी हुई तो माँ-बाप को शादी की चिंता। उसने भी अपने सपनों के राजकुमार के लिए न जाने कितने सपने सँजो रखे थे। खैर, वो दिन भी आ गया।
”..........आप की शिक्षा कितनी है?”
”..........जी, एम0ए0।”
”..........आपकी रूचियाँ क्या-क्या हैं?”
”..........जी, अच्छे-अच्छे पकवान बनाना, बागवानी करना, संगीत सुनना।”
लड़के वालों ने उसे एक बार साड़ी में देखा, फिर सलवार-सूट में। वह मन ही मन सोच रही थी कि एक बार तो हाँ कहकर देखो पूरा जीवन खुशियों से भर दूँगी। तभी उसके कान ड्राइंग रूम में चल रही वार्ता पर टिक गए।
”.........सब कुछ तो ठीक है। पर रंग जरा दबा हुआ है।”
”.........जी, रंग से क्या होता है? हमारी बिटिया तो गुणवान है।”
”........गुणवान से क्या होता है। हमें तो बहू गोरी-चिट्टी चाहिए।”
इतना सुनते ही वह ड्राइंग रूम में आई और लड़के वालों की तरफ मुखातिब होकर बोली-”कभी आपने अपने बेटे का चेहरा ध्यान से देखा है? जब आप लोगों को अपने बेटे का रंग सांवला होने पर शर्मिन्दगी नहीं होती तो एक लड़की के सांवले रंग पर प्रश्नचिन्ह क्यों? आज की बेटी इक्कीसवीं सदी की बेटी है, उसे इतना कमजोर न समझिए। यदि आप मेरे गुणों को कोई महत्व नहीं देते तो मैं भावी पति की किसी भी संभावना के रूप में आपके बेटे को रिजेक्ट करती हूँ।”
लघु कथा /अवार्ड का राज/ आकांक्षा यादव
पूरे आफिस में चर्चायें आरंभ हो गई थीं कि इस साल बेस्ट परफार्मेन्स का अवार्ड किसे मिलेगा? बात सिर्फ अवार्ड की नहीं थी, उसके साथ प्रमोशन भी तो जुड़ा था। हर कोई जुगत लगाने में लगा था कि किसी प्रकार यह अवार्ड उसे मिल जाए ।
उसे तो आए हुए अभी ज्यादा दिन भी नहीं हुए थे, पर उसके कार्य करने के तरीके व ईमानदारी की चर्चा सर्वत्र थी। जब भी कोई मीटिंग होती तो बॉस उसे शाम को रोक लेते और वह बड़े करीने से सभी एजेंडों के लिए नोट्स लिखकर फाइनल कर देता। बॉस भी उसकी कार्य-शैली व तत्परता से प्रभावित थे। उसे लगता कि अवार्ड तो उसे ही मिलेगा।
पर जब अवार्ड की घोषणा हुई तो उसका नाम नादारद था। उसे मन ही मन बहुत बुरा लगा। शाम को बुझे मन से वह घर जाने के लिए उठा। जब वह बॉस के चैम्बर के सामने से गुजरा तो अंदर से आ रही आवाज सुनने के लिए अनायास ही ठिठक गया।
.......“जबसे मैं यहाँ आया हूँ, तुमने हमारी बहुत सेवा की है। तुम भी तो हमारी जाति के हो। तुमसे तो हमारी धर्मपत्नी और बच्चे भी बहुत खुश रहते हैं। जब भी उन्हें मार्केटिंग इत्यादि के लिए जाना होता है, तुम्हीं को याद करते हैं। आखिर कुछ तो खूबी है तुममें।....और हाँ, पिछले महीने निरीक्षण के लिए आई टीम की तुमने इतनी अच्छी आवाभगत की, कि वह तो होटल के कमरों से बाहर निकले ही नहीं और वहीं पर निरीक्षण की खानापूर्ति कर चले गए।....अच्छा यह बताओ, सारे बिल तो मैनेज हो गए... अगले महीने बेटे का बर्थडे है, उसके लिए भी तो तुम्हें ही प्रबंध करना है।‘‘
यह कहते हुए बॉस ने जोरदार ठहाका लगाया। अब उसे अवार्ड का राज समझ में आ चुका था।
आकांक्षा यादव,
टाइप 5 निदेशक बंगला, पोस्टल ऑफिसर्स कॉलोनी
जेडीए सर्किल के निकट, जोधपुर, राजस्थान - 342001